जेल में हुई आत्महत्या के मामले को किया रफादफा, दोषी अफसरों को फिर मिली क्लीन चिट

इस घटना को लेकर जेल मे तनाव बना हुआ है। जेल प्रशासन के उत्पीड़न व वसूली से बन्दियों में खासा आक्रोश व्याप्त है। जेल में बन्दियों को मारपीट कर वसूली की जा रही है। बन्दी रूपेश के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ था। इससे आजिज आकर उसने आत्महत्या कर ली।

जेल में हुई आत्महत्या के मामले को किया रफादफा, दोषी अफसरों को फिर मिली क्लीन चिट
इस घटना को लेकर जेल मे तनाव बना हुआ है। जेल प्रशासन के उत्पीड़न व वसूली से बन्दियों में खासा आक्रोश व्याप्त है।

लखनऊ। जिला जेल में विचाराधीन बन्दी के आत्महत्या मामले में लखनऊ परिक्षेत्र के डीआईजी जेल ने  एक बार फिर दोषी अफसरों को क्लीन चिट दे दी। इससे जेल डीआईजी की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े हो गए। चर्चा है कि जिस डीआईजी को प्रतिमाह जेल से मोटा लिफाफा मिलता है वह वहां के अधिकारियों को कैसे दोषी ठहरा सकता है। अटकलें लगाई जा रही है कि परिवार के लोग भले ही इसको हत्या बता रहे हो किन्तु डीआईजी जेल ने इसको आत्महत्या करार देकर मामले को ही निपटा दिया।

बीती 28 अक्टूबर को लखनऊ जेल में सीतापुर जनपद के थाना बिसवां जलालपुर निवासी रूपेश कुमार पुत्र मेवा लाल लूट व अवैध तरीके से चोरी का सामान रखने के आरोप में जेल भेजे गए बन्दी ने आत्महत्या कर ली थी। सर्किल नंबर एक कि बैरेक नंबर 4/23 में बंद बन्दी रूपेश कुमार ने बजे बैरेक के शौचालय में अंगौछे से फांसी लगाकर अपनी जीवन लीला को समाप्त कर ली थी। इस घटना को लेकर जेल मे तनाव बना हुआ है। जेल प्रशासन के उत्पीड़न व वसूली से बन्दियों में खासा आक्रोश व्याप्त है। जेल में बन्दियों को मारपीट कर वसूली की जा रही है। बन्दी रूपेश के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ था। इससे आजिज आकर उसने आत्महत्या कर ली।

इस घटना की जांच लखनऊ परिक्षेत्र के डीआईजी जेल को सौंपी गई। शनिवार को रेंज डीआईजी शैलेन्द्र मैत्रेय घटना की जांच के लिए लखनऊ जेल पहुँचे। सूत्र बताते है कि  जांच अधिकारी ने बैरेक के बन्दियों के बयान व अधिकारियों के बयान की औपचारिकता पूरी कर चार-पांच घंटे में ही जांच निपटा दी। जांच अधिकारी ने बताया कि बन्दी के साथ कोई मारपीट नही की गई थी। बन्दी ने अवसाद में आकर आत्महत्या कर ली। जबकि बन्दी की पोस्टमार्टम रिपोर्ट कुछ और ही बयाँ कर रही है।

आत्महत्या करने वाले विचाराधीन बन्दी रूपेश कुमार की पोस्टमार्टम रिपोर्ट में मृतक बन्दी के सिर में चोट निकली है। इसके साथ ही मृतक बन्दी के पैरों में लाठियों से पिटाई किये जाने की पुष्टि हुई है। सूत्रों का कहना है कि जेल प्रशासन के अधिकारी वसूली के लिए बन्दियों की तलवा परेड कराते है। इसके बन्दी के हाथ व दोनों पैर बांध दिए जाते है। इसके बाद नंबरदार बन्दियों से बन्दी के पैर के तलवों पर लाठियां चलवाई जाती है। पचास-साठ लाठियां भांजने के बाद बन्दी को दौड़ाया जाता है। यह प्रक्रिया तब तक चलती है जब तक बन्दी अपने पैर पर खड़े होकर चल नही पाता है।

सूत्रों की मानें तो जेल प्रशासन के अधिकारियों ने वसूली के लिए बन्दी की तलवा परेड कराई थी। पोस्टमार्टम रिपोर्ट में कहा गया है कि मृतक बन्दी रूपेश की पहले पिटाई की गई उसके बाद उसने फांसी लगाई। यह सच जांच करने गए डीआईजी जेल को दिखाई ही नही पड़ा। उन्होंने सिर्फ मारपीट करने वाले अधिकारियों व बैरक के बन्दियों के बयान लेकर ही मामले को निपटा दिया। डीजी जेल आनंद कुमार ने कहा जांच रिपोर्ट आने के बाद कार्यवाही की जाएगी।

पहले भी डीआईजी जेल को नहीं मिले दोषी

लखनऊ। राजधानी की जिला जेल पुताई करने आया आदर्श कारागार का एक कैदी सुरक्षाकर्मियों को चकमा देकर फरार हो गया। इसी प्रकार इसी जेल का एक और कैदी फरार हुए। जेल के गल्ला गोदाम के रायटर बन्दी की मुखबरी पर जेल अधिकारियों ने खाली बोरो के गोदाम से 35 लाख के नोटों से भरा एक बोरा बरामद हुआ। इन घटनाओं की जांच तत्कालीन डीआईजी जेल लखनऊ परिक्षेत्र संजीव त्रिपाठी को सौंपी गई। इन जांचों में एक जांच में तो डीआईजी जेल मौके पर ही नही गए। उनके स्टेनो ने अफसरों से साठ गांठ करके मामले को निपटा दिया। हकीकत यह है कि इन जांचो में डीआईजी जेल को न तो कोई अधिकारी दोषी मिला और न ही कोई सुरक्षाकर्मी। डीआईजी जांच के संबंध में एक रिटायर डीआईजी कहते है जांच मिलते ही डीआईजी की बल्ले बल्ले हो जाती है। जांच वसूली के लिए ही दी जाती है। उन्होंने बताया कोई भी डीआईजी अपना मूल काम तो करता ही नही है। यही वजह की जेलो में वार्डर लंबे समय एक ही कमाऊ जगह पर जमे रहते है। डीआईजी न तो कभी बन्दियों के राशन की मापतौल कराते है और न ही कभी एमएसके के तहत होने वाली खरीद फ़रोख़्त के बिलों की पड़ताल करते है। यही वजह के जेलो पर मनमाने दामो पर वस्तुएं खरीदी जा रही है।

राकेश यादव
स्वतंत्र पत्रकार
मोबाइल न -  7398265003