प्रकृति की सच्चाई भी यही है कि स्त्री बिना पुरुष के अधूरी है

स्त्री जब प्रकृतिप्रदत्त अपने अमूल्य गुणों को त्यागकर पुरुष की भांति आचरण करने का दिखावा और पुरुष की भॉंति दिखने को ही उच्च वर्ग का समझते हुये उन कार्यों को करती है जो उसकी मर्यादा के खिलाफ हैं तो वो अपने स्वाभाविक स्त्रैण गुण को खोने के साथ-साथ कभी भी पौरुष गुणों को अपनी देह में स्वीकार या अपना नहीं पाती है.

प्रकृति की सच्चाई भी यही है कि स्त्री बिना पुरुष के अधूरी है
हाँ मुझे सुकूं देती है, ये मेरी शख्सियत, जो सिर्फ तुमसे बनी है

हाँ मुझे सुकूं देती है, ये मेरी शख्सियत, जो सिर्फ तुमसे बनी है

मुझे सुकूं देता है, भोर की लालिमा को देर तक निहारना
मुझे सुकूं देता है, कि तुम मेरी सारी ख्वाहिशे पूरी करते हो
हौले से मुस्कराकर फिर पूछते हो, कुछ और तो नहीं चाहिये
फिर बाद में ना कहना कि, तुम लाये नहीं और अपने काम करते रहे 
हाँ मुझे सुकूं देता है, कि घर की हर जरूरत को तुम समय पर पूरा करते हो 
हाँ मुझे सुकूं देती है, ये मेरी शख्सियत, जो सिर्फ तुमसे बनी है.......

मुझे सुकूं देता है, तुम्हारा मुस्कराकर, मेरा ध्यान अपनी ओर खींचना
और कहना एक साथ इतना काम मत करो, रुक - रुक कर करो
वो बात - बात पे तुम्हारा ये कहना, ध्यान से कहीं, चोट ना लग जाये  
रुको मैं चलता हूँ, तुम पैदल मत जाओ, मैं कार से छोड़ देता हूँ
हाँ मुझे सुकूं देता है, जब तुम मेरी परवाह करते है......
हाँ मुझे सुकूं देती है, ये मेरी शख्सियत, जो सिर्फ तुमसे बनी है....

मुझे सुकूं देता है, छुट्टियों में पहाड़ी इलाकों की सैर करना
मुझे सुकूं देता है, सफर में, थकान रहते भी तुम सूटकेस को उठा लेते हो 
फिर कहते हो मेरा हाँथ पकड़ लो, कहीं किसी का धक्का ना लग जाये
मुझे सुकूं देता है, मुझे सबसे पहले प्लेन में सीट पर बैठा देना, फिर हैण्ड बैगेस रखना
हाँ मुझे सुकूं देता है,  तुम्हारा ये कहना कि, तुम आराम से बैठो, मैं सब कर लूँगा.....
हाँ मुझे सुकूं देती है, ये मेरी शख्सियत, जो सिर्फ तुमसे बनी है....

मुझे सुकूं देता है, अपनी ससुराल गाँव में जाकर तुम्हारे बचपन को जीना
मुझे सुकूं देता है, खेत की मेंढ़ पे तुम्हारे क़दमों के निशां पे कदम रखना
तुम्हारा मुड़ – मुड़ के मुझे देखना, फिर कहना देखो कहीं गिर ना जाना 
ये तुम्हारा शहर नहीं है जो सपाट और चमचमाती चौड़ी सड़कें हों
हाँ मुझे सुकूं देता है, कि परवाह के साथ ही तुम्हे मुझसे बेइंतहा मोहब्बत है .....
हाँ मुझे सुकूं देती है, ये मेरी शख्सियत, जो सिर्फ तुमसे बनी है.... 

मुझे सुकूं देता है, खून और धर्म के रिश्तों को बांधकर रखना
मुझे सुकूं देता है, रिश्तों कि गरिमा तुम भली भांति बरकरार रखते हो
जब भी रिश्तों की बुनियाद हिली, तो तुम रिश्तों को बीन-बीन कर संवारते हो
और तुम हक़ से कहते हो,  सुनो तुम परेशान न हो, मैं सब ठीक कर दूंगा
हाँ मुझे सुकूं देता है, कि मैं तुमसे हूँ.... जिसके लिए तुम इतना धैर्य कहाँ से लाते हो ........
हाँ मुझे सुकूं देती है, ये मेरी शख्सियत, जो सिर्फ तुमसे बनी है....

मुझे सुकूं देता है, तुमसे कद में छोटा बने रहना
मुझे सुकूं देता है, तुम्हारे कांधे पे सर रखकर सोना... क्यूंकि
तुममें शामिल है प्यार, संयम, समझदारी के साथ जिंदगी भर साथ निभाने का वादा
जिसे तुमने सात वचनों के पवित्र बंधन में पिरोके रखा है
हाँ मुझे सुकूं देता है, कि तुमने मेरे विश्वाश की नीव को कभी हिलने ना दिया.....
हाँ मुझे सुकूं देती है, ये मेरी शख्सियत, जो सिर्फ तुमसे बनी है........

प्रकृति की सच्चाई भी यही है कि स्त्री बिना पुरुष के अधूरी है l 

लेकिन अक्सर महिलायें पुरुषों से मुकाबला करने के चक्कर में इस सुखद अनुभूति से वंचित रह जाती हैं l धीरे - धीरे जिन्दगी से खुशियाँ दम तोड़ने लगती है l महिला - पुरुष समानता हर नारी चाहती है और मैं भी चाहती हूं लेकिन, ऐसी समानता नहीं l अपने आपको पुरुष से कम न मानने वाली सुशिक्षित और आधुनिका कहलानें वालीं ऐसी स्त्रियों की पीड़ा बहुत ही मार्मिक है l स्त्री जब प्रकृतिप्रदत्त अपने अमूल्य गुणों को त्यागकर पुरुष की भांति आचरण करने का दिखावा और पुरुष की भॉंति दिखने को ही उच्च वर्ग का समझते हुये उन कार्यों को करती है जो उसकी मर्यादा के खिलाफ हैं तो वो अपने स्वाभाविक स्त्रैण गुण को खोने के साथ-साथ कभी भी पौरुष गुणों को अपनी देह में स्वीकार या अपना नहीं पाती है l इन स्थितियों में स्त्री का अवचेतन न तो सम्पूर्णता से स्त्रैण ही रह पाता है और न हीं पौरुष गुणों को समाहित कर पाता है l नारीत्व के इन गुणों से रिक्त ऐसी स्त्री में विश्‍वास, कोमलता, निष्ठा, प्रतीक्षा, सरलता, नम्रता, उदारता, समर्पण, माधुर्य,सुघड़ता, दयालुता आदि नैसर्गिक गुण धीरे-धीरे समाप्त हो जाते हैं l जिस कारण वश से दाम्पत्य सुख का बिखराव शुरू हो जाता है जो सफल दाम्पत्य के लिये अपरिहार्य होते हैं l प्रकृति की सच्चाई भी यही है कि स्त्री बिना पुरुष के अधूरी है l.....


   सुनीता दोहरे 
प्रबंध सम्पादक / इण्डियन हेल्पलाइन न्यूज़