भ्रष्टाचार : लालच और असंतुष्टि एक ऐसा विकार

कई सालों से सत्ता में रहने के बाद भी भ्रष्टाचार के मुद्दे पर बीजेपी सरकार ने कोई विशेष सक्रियता नहीं दिखाई है l सरकारी दफ्तर रिश्वतखोरी का बड़ा अड्डा बने हुए हैं। इनमें भी सबसे ज्यादा रिश्वतखोरी राज्य सरकारों के ऑफिसों में होती है

भ्रष्टाचार : लालच और असंतुष्टि एक ऐसा विकार
भ्रष्टाचार की दीमकें हमारी सारी व्यवस्था को खोखला कर रही हैं

कई सालों से सत्ता में रहने के बाद भी भ्रष्टाचार के मुद्दे पर बीजेपी सरकार ने कोई विशेष सक्रियता नहीं दिखाई है l सरकारी दफ्तर रिश्वतखोरी का बड़ा अड्डा बने हुए हैं। इनमें भी सबसे ज्यादा रिश्वतखोरी राज्य सरकारों के ऑफिसों में होती है

भ्रष्टाचार की दीमकें हमारी सारी व्यवस्था को खोखला कर रही हैं। कभी सोने की चिड़िया कहा जाने वाला भारत आज भ्रष्टाचार के कीचड़ में धंस चुका है। हमारे नैतिक मूल्य और आदर्श सब स्वाहा हो चुके हैं। बढ़ता हुआ भ्रष्टाचार आचरण दोष का ही परिणाम है। लालच और असंतुष्टि एक ऐसा विकार है जो व्यक्ति को बहुत अधिक नीचे गिरने पर विवश कर देता है। व्यक्ति के मस्तिष्क में सदैव अपने धन को बढ़ाने की प्रबल इच्छा उत्पन्न होती है।

देखा जाये तो कार्रवाई विपक्ष के नेताओं पर ही हुई है l देखा जाए तो भ्रष्टाचार के कई अलग अलग कारण हैं जिनके चलते आम जन में यह धारणा बनती चली गयी कि सरकारी विभागों में बिना पैसे खिलाये काम नहीं होता है यदि वे रिश्वत नहीं देंगे तो सरकारी कर्मचारी कोई न कोई बहाना बना कर उनका काम अटकाते रहगे l भारत में भ्रष्टाचार का रोग बढ़ता ही जा रहा है। हमारे जीवन का कोई भी ऐसा क्षेत्र नहीं बचा, जहां भ्रष्टाचार के असुर ने अपने पंजे न गड़ाए हों। भारत नैतिक मूल्यों और आदर्शों का कब्रिस्तान बन गया है। देश की सबसे छोटी इकाई पंचायत से लेकर शीर्ष स्तर के कार्यालयों और क्लर्क से लेकर बड़े अफसर तक, बिना घूस के आज सरकारी फाइल आगे ही नहीं सरकती। अतः यदि सरकारी दफ्तर के फालतू चक्कर काटने और बेकार में परेशान होने से बचना है तो रिश्वत देकर काम करवा लेने में ही समझदारी हैl

और दूसरा पहलू ये भी है कि सरकारी कर्मचारियों का रवैया भी आम जन के प्रति सकारात्मक अथवा सहयोगात्मक नहीं होने से ज्यादातर सरकारी विभागो के बारे में यही सोच बनती जा रही है इन सबके चलते आमजन को जो दिक्कतों का सामना करना पड़ता है उससे इन सरकारी कर्मचारियों, नेताओं, देश और प्रदेश की सरकारों को क्या फर्क पड़ता है इससे ठीक विपरीत वहीं दूसरी ओर रिश्वतखोर सरकारी कर्मचारियों द्वारा रिश्वत लेने और मांगने के नित नये तरीके सामने आ रहे है l कोई कुल प्रोजेक्ट राशि के परशेंटेज के आधार पर रिश्वत की राशि तय करता है, तो कभी फाईल आगे बढाने के लिये फाईल पर वजन रखने की बात भी सुनने में आती है, तो कोई इसे चाय पानी, बच्चो के लिये मिठाई, सुविधा शुल्क, दक्षिणा, आदि के नाम से मांगता है l तो कुछ लोग रिश्वत की राशि भी मुंह से नहीं बोल कर के केलकुलेटर पर अंकों में दर्शा कर मांगते नजर आते हैं l

सबसे ज्यादा गंभीर बात कि ज्यादा होशियार और पूरी तरह से भ्रष्ट सरकारी कर्मचारी रिश्वत की रकम सीधे नहीं लेते है बल्कि इसके लिये बकायदा दलाल रखे हुए हैl सबसे ज्यादा गंभीर बात कि ज्यादा होशियार और पूरी तरह से भ्रष्ट सरकारी कर्मचारी रिश्वत की रकम सीधे नहीं लेते है बल्कि इसके लिये बकायदा दलाल रखे हुए है l सरकारी विभाग के बाहर यह दलाल सक्रिय रहते है तथा काम करवाने की एवज में दलाली तय करते समय यह व्यक्ति को स्पष्ट बताते है कि इसमें उनकी दलाली तो नाम मात्र की है, मोटी रकम तो सरकारी कर्मचारियों को रिश्वत बतौर चली जायेगी l अगर यही अवधारणा बन गई तो आने वाले समय में कथित सरकारी विभागो के औचित्य पर ही प्रश्नचिन्ह लग जायेगा और सरकार या तो इनके अधिकार कम करने अथवा विभागों का अस्तित्व ही खतम करने पर विवश हो जाएगी और अगर ऐसा हो गया तो देश की कार्यप्रणाली प्रभावित होगी.

देखा जाये तो हम स्वयं यह कोशिश ही नहीं करते है कि हमारा काम बिना रिश्वत के ही हो जाये तथा जानबूझकर सम्बन्धित कर्मचारी को खुश करके अपना काम प्राथमिकता से करवाने हेतु आगे होकर कुछ देने की प्रवृति अपनाते है l अगर भ्रष्टाचार से निजात पाना है, तो हमें खुद से ही शुरुआत करनी होगी, रिश्वत न देने का संकल्प लेना होगा। फिर मतदाता के तौर पर भी हम भ्रष्टचार से लड़ने में काफी अहम भूमिका निभा सकते हैं। भ्रष्टाचार को रोकने के लिए कठिन कानून बहुत महत्वपूर्ण हैं। इन सबसे ऊपर, दोषी व्यक्तियों को कड़ी सजा दी जानी चाहिए। इसके अलावा, सख्त कानूनों का एक कुशल और त्वरित कार्यान्वयन होना चाहिए। उम्मीद है कि लगातार राजनीतिक और सामाजिक प्रयासों से हम भ्रष्टाचार से छुटकारा पा सकते हैं।

              विपिन शर्मा
प्रधान संपादक/इण्डियन हेल्पलाइन न्यूज़