सैद्धांतिक तौर पर मानव अधिकार इस धरती के सभी इंसानों के लिए बराबर

मानवाधिकार एक ऐसा विषय है जो सभी सामाजिक विषयों में सबसे गंभीर है जिसे हम एक तरफा होकर नहीं सोच सकते अर्थात हम ये कह सकते हैं कि मानव अधिकार वह मानदंड हैं जो मानव व्यवहार के मानकों को स्पष्ट करते हैं l एक इंसान होने के नाते ये वो मौलिक अधिकार हैं जिनका प्रत्येक व्यक्ति स्वाभाविक रूप से हकदार है l

सैद्धांतिक तौर पर मानव अधिकार इस धरती के सभी इंसानों के लिए बराबर
राष्ट्रीय मानवाधिकार

वर्तमान समय में देश में जिस तरह का माहौल है उसे देखते हुए मानवाधिकार की चर्चा बहुत आवश्यक हो जाती है । वर्तमान में भारत एक ऐसे दौर से गुजर रहा है जब यहां “जन” और “तंत्र” दोनों के द्वारा ही मानव अधिकारों की उपेक्षा और अवहेलना बढती जा रही है। मानव अधिकारों के लिए जारी संघर्ष,  इन्सानी अधिकारों की पहचान और वजूद को अस्तित्व में लाने के लिए हर साल 10 दिसंबर को अंतरराष्‍ट्रीय मानवाधिकार दिवस (यूनिवर्सल ह्यूमन राइट्स डे) मनाया जाता है l

मानवता के खिलाफ हो रहे जुल्मों-सितम को रोकने, इंसानी अधिकारों को पहचान देने, उसके हक की लड़ाई को ताकत देने और पूरी दुनिया में हो अमानवीय कृत्यों के खिलाफ संघर्ष की आवाज को मुखर करने में इस दिवस की महत्वूपूर्ण भूमिका है l क्यूंकि हर इंसान को जिंदगी, आजादी, बराबरी और सम्मान का अधिकार ही मानवाधिकार है l सैद्धांतिक तौर पर मानव अधिकार इस धरती के सभी इंसानों के लिए बराबर हैं फिर वे चाहे किसी भी नस्ल, धर्म, लिंग या राष्ट्र के हों.

12 अक्‍टूबर, 1993 में सरकार ने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग का गठन किया था l वहीं 10 दिसंबर 1948 को 'संयुक्त राष्ट्र असेंबली' ने विश्व मानवाधिकार घोषणा पत्र जारी कर पहली बार अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार दिवस की घोषणा की थी.

सही मायने में देखा जाए तो मानवाधिकार एक ऐसा विषय है जो सभी सामाजिक विषयों में सबसे गंभीर है जिसे हम एक तरफा होकर नहीं सोच सकते अर्थात हम ये कह सकते हैं कि मानव अधिकार वह मानदंड हैं जो मानव व्यवहार के मानकों को स्पष्ट करते हैं l एक इंसान होने के नाते ये वो मौलिक अधिकार हैं जिनका प्रत्येक व्यक्ति स्वाभाविक रूप से हकदार है l ये अधिकार कानून द्वारा संरक्षित हैं.

मानव अधिकारों की जड़ें प्राचीन विचारक तथा “प्राकृतिक विधि” और “प्राकृतिक अधिकार” की दार्शनिक अवधारणाओं में पाई जाती है l मानव अधिकारों के आधुनिक रूप में वास्तविकताएं सत्रव्हीं ,अठारहवीं शताब्दी में आरंभ हुई थी l अठारहवीं शताब्दी में ज्ञानोदय का समय प्रारम्भ हुआ जिसने मानव के भीतर विश्वास व पारंगतता की भावना को और अधिक मजबूत कर दिया तथा इंग्लिश दर्शन शास्त्रियों जैसे कि मान टेसक्यू,  वाल्टेयर और रूसो तथा जोन लाक (फादर ऑफ द लिबरे लीजम) में व्यक्तियों के जीने, स्वतंत्रता तथा संपत्ति के अधिकारों पर जोरों से चर्चा करनी शुरू कर दी थी. ऐतिहासिक रूप से मानव अधिकार के संघर्ष का प्रमाण 15 जून 1215 में ब्रिटेन के सम्राट जोन द्वारा अपनी समिति को कतिमय मानव अधिकारों की मान्यता देने वाले घोषणा पत्र पर हस्ताक्षर से मिलता है जो विश्व में मैग्ना कार्टा के नाम से प्रसिद्ध है l

इसी क्रम में 1920 में संयुक्त राष्ट्र का गठन किया गया तथा 10 दिसंबर 1948 को महासभा ने एक प्रस्ताव पारित करके “मानव अधिकारों” की विश्व घोषणा को अंगीकार किया l मानव अधिकार का सरंक्षण मूल भारत में वैदिक काल के धर्म में पाया जाता है l  “सर्वे भवन्तु सुखिन, सर्वे सन्तु निरामया” इसका अर्थ भारतीय जीवन का प्रमुख दर्शन है तथा इसकी प्राप्ति ही मनुष्य का चरम लक्ष्य है l भर्तु हरि ,बात्सायन कौटिल्य के ग्रंथों में भी मानव अधिकार को मनुष्य का स्वाभाविक गुण बताया गया है l गीता में भी मानव अधिकार का उल्लेख है   “कर्में बाधिका रस्ते” धर्म प्राचीन भारत का सर्वोत्तम क़ानून है l ये क़ानून नैतिकता, न्याय और सत्यनिष्ठा का पाठ पढ़ाता है l धर्म का अर्थ है रक्षा करना, पोषण करना तथा कर्तव्यों का निर्वाह करना l  मनु स्मृति, नीति वचन, कामसूत्र, अर्थशास्त्र आदि सभी ग्रंथों में मानव अधिकारों की चर्चा विभिन्न प्रसंगों में देखने को मिलती हैl  

अर्थवेद में कहा गया है l कि जीवन का जुआ प्रत्येक व्यक्ति के कंधे पर समान रूप से रखा जाता है l अतः प्रत्येक व्यक्ति अपने नैसर्गिक, आधारभूत, अन्तःनिहर्ता या जन्मजाति अधिकार की सहायता से अपनी खुशियों को पाने का प्रयास करता है l भारत के विभिन्न संतों ने मानव अधिकार के विकास की दिशा में प्रयास किये l बुद्द महावीर, कबीर, गुरुनानक आदि ने सन्देश भी हमें मानवीय मूल्यों की रक्षा के दिए हैं.

यह उललेखनीय है कि विश्व संस्था मानव अधिकारों के अतिक्रमण के निवारण में अब तक बहुत प्रभावी साबित नहीं हुई है। मानव अधिकारों के उन्नयन और पालन के लिए संयुक्त राष्ट्र द्वारा उठाए गये बहुविध कदमों के बावजूद भी उसका अतिक्रमण और उसे नकारना अब भी कायम है। राजनैतिक हत्याएं, धार्मिक पीड़न, जाति संहार सिविलि युद्ध क्रमशः बढ़ता हुआ आतंकवाद इत्यादि विश्व के वहुत भागों में बहुलता से चल रहे हैं.

विपिन शर्मा
प्रधान संपादक/इण्डियन हेल्पलाइन न्यूज़