नागौर के बड़ायली में आसमान से गिरे आग के गोले : ISRO वैज्ञानिक बोले- 40 किलोमीटर एरिया में गिरे हैं उल्का पिंड, 15 गांवों में चलेगा सर्च ऑपरेशन

नागौर के बड़ायली स्थित एक होटल के CCTV में पूरी घटना कैद हुई है। इसे देखकर वैज्ञानिकों की टीम ने संभावना जताई है कि वहां से उत्तर दिशा में 40 किलोमीटर के क्षेत्र में उल्का पिंड गिरा है। इसके पार्टिकल्स खोजने के लिए सर्च ऑपरेशन शुरू कर दिया है। इसके लिए टीम आस-पास से भी फुटेज जुटाने के साथ इस पूरे एरिया को ट्रैक कर रही है।

नागौर के बड़ायली में आसमान से गिरे आग के गोले : ISRO वैज्ञानिक बोले- 40 किलोमीटर एरिया में गिरे हैं उल्का पिंड, 15 गांवों में चलेगा सर्च ऑपरेशन
वैज्ञानिक ने कहा- बड़ायली के 40 किमी इलाके में गिरा उल्कापिंड

15 दिन पहले हुई खगोलीय घटना को लेकर रिसर्च शुरू हो गया है। देशभर के वैज्ञानिक जांच में जुट गए हैं। अब इस रिसर्च को लेकर ISRO की फिजिकल रिसर्च लैब की टीम ने भी काम शुरू कर दिया है। नागौर के बड़ायली स्थित एक होटल के CCTV में पूरी घटना कैद हुई है। इसे देखकर वैज्ञानिकों की टीम ने संभावना जताई है कि वहां से उत्तर दिशा में 40 किलोमीटर के क्षेत्र में उल्का पिंड गिरा है। इसके पार्टिकल्स खोजने के लिए सर्च ऑपरेशन शुरू कर दिया है। इसके लिए टीम आस-पास से भी फुटेज जुटाने के साथ इस पूरे एरिया को ट्रैक कर रही है।

ISRO साइंटिस्ट नरेंद्र भंडारी की टीम में काम करने वाले रिसर्चर प्रतीक तिवाड़ी ने बताया कि दैनिक भास्कर के माध्यम से उन्हें इस घटना के बारे में जानकारी मिली थी। इसके बाद उन्होंने अपने सभी टीम साइंटिस्ट और सीनियर को फुटेज भेजा। वो लगातार इस खगोलीय घटना को लेकर पड़ताल में जुटे हैं। अब आगे कि रिसर्च के लिए पार्टिकल्स खोजना बेहद जरूरी है। साइंटिस्ट इसके लिए नागौर विजिट का प्लान भी बना रहे हैं।

इन 15 गांवों के एरिया को करेंगे ट्रैक : रिसर्चर प्रतीक तिवाड़ी ने बताया कि नागौर के ढावा, जारोड़ा कलां, मेड़ता रोड, लाई, मेड़ता सिटी, खेडूली, पांडू खां, कलरु, जालसू नानक, सरसंडा, ईड़वा, सुंदरी, पालियास, बग्गड़ और जलवाना गांवों के एरिया को ट्रैक किया जाएगा। यहां सर्च ऑपरेशन के माध्यम से इनके पार्टिकल्स के बारे में पता लगाया जाएगा। टीम इन गांवों से कुछ फुटेज भी तलाशने में जुटी है। टीम 3 जनवरी की रात 1 बजे के बाद वाले सीसीटीवी फुटेज भी तलाश कर रही है।

राजस्थान में अब तक 21 उल्का पिंड गिर चुके : राजस्थान में अब तक 21 उल्का पिंड गिर चुके हैं। । 2000 के बाद, 6 अलग-अलग प्रकार के उल्का पिंडों की पहचान की गई। उन्हें आधिकारिक नाम दिए गए हैं। उल्का पिंडों को उनके गिरने या खोजे जाने के स्थान के अनुसार नाम दिए गए हैं।

उल्का पिंडों के ये हैं नाम

  1. इटावा भोपजी (2000)
  2. अरारकी (2001)
  3. भवाद (2002)
  4. कावरपुरा (2006)
  5. मुकुंदपुरा (2017)
  6. सांचौर (2020, वर्तमान में वर्गीकरण के तहत)

ISRO की फिजिकल रिसर्च लैब के स्पेस साइंटिस्ट डॉक्टर नरेंद्र भंडारी ने बताया कि उल्का पिंड के पार्टिकल्स की स्टडी करने से सौर मंडल के गठन और पृथ्वी पर जीवन के विकास के रहस्य का पता करने में मदद मिल सकती है।

ऐसे होते हैं उल्का पिंड : रिसर्चर साइंटिस्ट प्रतीक तिवाड़ी ने बताया कि उल्का पिंड पत्थर या लोहे से भरपूर पिंड होते हैं, जो ग्रहों के हिस्से होते हैं। ये टूटे हुए या फिर तैरते हुए मिल सकते हैं। अधिकांश उल्का पिंड पूरी तरह से वातावरण में जल जाते हैं। कभी-कभी धरती पर आने के बाद बचे हुए टुकड़े मिल जाते हैं।