श्रीकृष्ण जन्माष्टमी 2021 : जानिए शुभ संयोग, पूजा मुहूर्त और पारण का समय, भगवान श्रीकृष्‍ण का सभी अवतारों में सर्वोच्च स्थान है।

श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के दिन सुबह 07 बजकर 47 मिनट के बाद हर्षण योग बन रहा है। ज्योतिष शास्त्र में हर्षण योग को बेहद शुभ माना जाता है। इस योग में किए गए कार्यों में सफलता हासिल होती है।

श्रीकृष्ण जन्माष्टमी 2021 : जानिए शुभ संयोग, पूजा मुहूर्त और पारण का समय, भगवान श्रीकृष्‍ण का सभी अवतारों में सर्वोच्च स्थान है।
बालपन में माता यशोदा मैया को अपने मुख में ब्रह्मांड के दर्शन करा दिए थे।

श्रीकृष्ण का जन्म एक रहस्य है क्योंकि उनका जन्म जेल में हुआ और वह भी विष्णु ने अपने 8वें अवतार के रूप में 8वें मनु वैवस्वत के मन्वंतर के 28वें द्वापर में भाद्रपद के कृष्ण पक्ष की रात्रि के 7 मुहूर्त निकल गए और 8वां उपस्थित हुआ तभी आधी रात के समय सबसे शुभ लग्न उपस्थित हुआ। उस लग्न पर केवल शुभ ग्रहों की दृष्टि थी। रोहिणी नक्षत्र तथा अष्टमी तिथि के संयोग से जयंती नामक योग में लगभग 12 बजे अर्थात शून्य काल में जन्म लिया था l

जन्माष्टमी के दिन शुभ संयोग :  श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के दिन सुबह 07 बजकर 47 मिनट के बाद हर्षण योग बन रहा है। ज्योतिष शास्त्र में हर्षण योग को बेहद शुभ माना जाता है। इस योग में किए गए कार्यों में सफलता हासिल होती है। जन्माष्टमी के दिन कृत्तिका और रोहिणी नक्षत्र रहेगा।

हिंदू पंचांग के अनुसार, भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि 29 अगस्त दिन रविवार को रात 11 बजकर 25 मिनट से शुरू होगी, जो 30 अगस्त को देर रात 1 बजकर 59 मिनट पर समाप्त होगी। कहा जाता है कि भगवान श्रीकृष्ण का जन्म आधी रात को हुआ था और व्रत उदया तिथि में रखना उत्तम माना जाता है। इसलिए श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का त्योहार 30 अगस्त को मनाया जाएगा।

जन्माष्टमी 2021 पूजा मुहूर्त : इस साल श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का पूजा मुहूर्त 30 अगस्त की रात 11 बजकर 59 मिनट से देर रात 12 बजकर 44 मिनट तक रहेगा। बाल गोपाल के पूजा की कुल अवधि 45 मिनट है।

व्रत पारण का समय : श्रीकृष्ण जन्माष्टमी व्रत पारण का समय 31 अगस्त को सुबह 09 बजकर 44 मिनट के बाद ही कर सकते हैं। इस समय ही रोहिणी नक्षत्र समाप्त होगा।

भगवान श्रीकृष्‍ण का सभी अवतारों में सर्वोच्च स्थान : संपूर्ण भारत में उन्हीं के सबसे अधिक और प्रसिद्ध मंदिर है। दुनियाभर में उन्हीं पर शोध हो रहे हैं और दुनियाभर के लोग उन्हीं को सबसे ज्यादा पसंद करते हैं। श्री कृष्ण अपने भक्तों के मित्र, दोस्त या सखा हैं। वे कभी भी किसी भक्त के भगवान नहीं बने। उन्होंने हमेशा मित्रता को ही महत्व दिया। चाहे सुदामा हो, अर्जुन हो गया फिर कलिकाल में भक्त माधवदास और मीरा। श्रीकृष्‍ण अपने भक्तों के सखा भी और गुरु भी हैं। श्रीकृष्ण विष्णु के 10 अवतारों में से एक आठवें अवतार थे, जबकि 24 अवतारों में उनका नंबर 22वां था। उन्हें अपने अगले पिछले सभी जन्मों की याद थी। सभी अवतारों में उन्हें पूर्णावतार माना जाता है।

बालपन में माता यशोदा मैया को अपने मुख में ब्रह्मांड के दर्शन करा दिए थे। वे सांदीपनि ऋषि के मृत पुत्र को यमराज के पास से पुन: ले आए थे। उन्होंने मथुरा में कुबड़ी कुब्जा को तक्षण ही ठीक कर दिया था। उन्होंने इंद्र का अहंकार चूर करने के लिए गोवर्धन पर्वत को अपनी चींटी अंगुली से उठा लिया था। उन्होंने धृतराष्ट्र की सभा में जब द्रौपदी का चीरहरण हो रहा था तब उन्होंने अपने चमत्कार से द्रौपदी की साड़ी लंबी कर दी थी।

बर्बरीक का सिर काटकर एक स्थान विशेष पर रख दिया था जहां से वह युद्ध देख सके। जयद्रथ वध के पूर्व उन्होंने अपनी माया से समय पूर्व ही सूर्यास्त करके पुन: उसे उदित कर दिया था। उन्होंने अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा के गर्भ में पल रहे पुत्र परीक्षित पुन: जीवित कर दिया था और अश्‍वत्थामा को 3 हजार वर्षों तक जीवित रहने के श्राप दे दिया था। इस तरह उनके सैंकड़ों चमत्कार है।

दुनिया में वे ऐसे पहले व्यक्ति थे जिन्होंने युद्ध के मैदान में ज्ञान दिया और वह भी ऐसा ज्ञान जिस पर दुनियाभर में हजारों भाष्य लिखे गए और जो आज भी प्रासंगिक है। असल में गीता को ही एक मात्र धर्मग्रंथ माना जाता है। उनके जीवन चरित श्रीमद्भागवत पुराण में वर्णित है। श्रीकृष्‍ण ने गीता के अलावा भी और भी कई गीताएं कहीं हैं। जैसे अनु गीता, उद्धव गीता आदि। गीता में उन्होंने धर्म, ईश्‍वर और मोक्ष का सच्चा रास्ता बताया।